May 4, 2016

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प्रो. राजेंद्र सिंह की जीवन यात्रा

प्रिय वाचक,

रज्जू भैय्या के व्यक्तित्व के बारे में सोचते सामान्य परम पूजनीय गुरूजी का कार्यकर्ता सम्बंधित विवेचन स्मरण में आता है। "कोयला और हीरा –दोनों का मूल धातु 'कारबन' है। जल जाने के बाद शेष रहती है राख।

किन्तु जलते समय कोई बड़ा छोटा कोयले के पास नहीं जाता, असहनीय उष्णता के कर्ण दूर से देखता है। अब हीरा, वह जलता नहीं चमकता है। सब उस के पास दौड़े जाते है, उसको हथेली पर रखते है, निहारते है, अपनाना चाहते है। ध्येयवादिता की दृष्टी से कोयला-हिरा सामान है किन्तु उपगम्यता एवं स्वीकार्यता की दृष्टी से कोयला कोयला है, हीरा हीरा है। कार्यकर्ता को हीरे जैसा होना चाहिए।

रतन सारडा द्वारा रेखांकित 'जिवन यात्रा' इस हीरे की है। उस के पास जाना और उसे हाथ में लेना वांछनीय है। उस से पाठक का लाभ होगा। वह इस में लक्षित यात्री का सहयात्री बनेगा। इससे वह इस महान देश का नि:स्वार्थी समर्पित सेवक बन जायेगा। आज अपन देश में उस स्टार के सेवकों की माँग है। इस माँग को यथसंभव पूरा करने में यह पुस्तक सफल होगी।

श्री रतन सारडा
संकलक व लेखक


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